पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ( Mamata Banerjee ) की सरकार तीसरी कार्यकाल की गुरुवार को पहली वर्षगांठ मना रही है. पिछले साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 (West Bengal Assembly Election 2021 ) में तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने बीजेपी को करारी शिकस्त दी थी. 294 सीट वाली विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने 213 पर जीत हासिल कर बम्पर जीत हासिल की थी. विधानसभा चुनाव में जीत के बाद ममता बनर्जी को बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रमुख विरोधी चेहरा के रूप में पेश किया गया था, लेकिन बंगाल विधानसभा चुनाव परिणाम के एक साल बीत गए हैं. हालांकि ममता बनर्जी ने बंगाल की राजनीति में अपनी स्थिति काफी मजबूत की हैं. बंगाल में हुए चुनावों में बीजेपी सहित अन्य विरोधी दल कांग्रेस और माकपा हाशिए पर हैं.ममता बनर्जी की पार्टी लगातार चुनावों में एक के बाद एक जीत हासिल कर रही है, लेकिन जैसा एक साल पहले माना जा रहा था कि ममता बनर्जी देश की राजनीति में एंट्री करेंगी, लेकिन उनका यह सपना एक साल में ही चकनाचूर हो गया है. अब बंगाल में जीत के एक साल पर राज्य में ही ममता बनर्जी के नेतृत्व को लेकर बहस शुरू हो गई है.
हाल में टीएमसी के प्रवक्ता और पूर्व सांसद कुणाल घोष ने हाल में अपने फेसबुक पोस्ट में दावा किया था कि ममता बनर्जी बंगाल में 2036 तक शासन करेंगी, जबकि दूसरी सांसद अपरूपा पोद्दार ने ट्वीट कर दावा किया था कि ममता बनर्जी 2024 में देश का प्रधानमंत्री बनेंगी और ममता बनर्जी के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे. इससे साफ लगता है कि बंगाल में भी ममता बनर्जी के नेतृत्व को कहीं न कहीं चुनौती मिल रही है, भले ही यह चुनौती उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी से ही मिल रही हो या खुद वह रणनीति के तहत अभिषेक बनर्जी को अगले सीएम को रूप में पेश करने की चाल चल रही हैं.
ममता बनर्जी ने ब्रिगेड मैदान में 22 दलों के साथ की थीं यूनाइटेड इंडिया रैली
हालांकि टीएमसी के नेता और तृणमूल कांग्रेस साल 2019 के लोकसभा चुनाव से ही ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले खड़ी कर रही है. ममता बनर्जी ने कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में बीजेपी विरोधी नेताओं को रैली भी की थी.19 जनवरी, 2019 को कोलकाता में यूनाइटेड इंडिया रैली हुई थी. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी द्वारा आयोजित इस बैठक में विपक्ष से लगभग 22 दलों के दिग्गज नेता पहुंचे थे. इस रैली में पूर्व प्रधानमत्री देवगौड़ा, सपा नेता अखिलेश यादव, फारूक अब्दुल्ला, चंद्रबाबू नायडू जैसे पूर्व केंद्रीय मंत्रियों से लेकर कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री भी विपक्षी एकजुटता वाली इस रैली में शामिल हुए थे. लेकिन साल 2019 के चुनाव परिणाम के बाद विरोधी खेमा पूरी तरह से बिखर गया और पीएम नरेंद्र मोदी फिर से देश के प्रधानमंत्री बने. इस चुनाव में ममता बनर्जी का बंगाल में जनाधार खिसक गया. लोकसभा की कुल 42 सीटों में से 18 पर कब्जा कर बीजेपी ने ममता बनर्जी को जबरदस्त चुनौती दी थी.
विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी को विपक्षी चेहरा के रूप में किया गया पेश
लोकसभा चुनाव 2019 का प्रभाव साल 2021 के विधानसभा चुनाव पर पड़ा. बीजेपी ने बंगाल में सत्ता हासिल करने की दावा पेश किया और ममता बनर्जी को करारी चुनौती पेश की, लेकिन लोकसभा चुनाव के विपरीत विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी का जादू चला और ममता बनर्जी की पार्टी ने बम्पर जीत हासिल की और हालांकि ममता बनर्जी खुद नंदीग्राम से विधानसभा चुनाव हार गई थी, लेकिन फिर से ही पिछले साल 5 मई को तीसरी बार राज्य की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. उसके बाद ममता बनर्जी को फिर से देश में विपक्ष का चेहरा के रूप में पेश किया गया, लेकिन एक साल के बाद भी ममता बनर्जी की राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री नहीं हो गई है.
चुनाव के बाद ममता बनर्जी ने विरोधी दलों को एकजुट करना किया शुरू
विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी ने दिल्ली का दौरा किया था और कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी. उनकी मुलाकात दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित कांग्रेस के आला नेताओं से हुई थी. उसके बाद ममता बनर्जी मुंबई गईं और वहां उनकी मुलाकात एनसीपी प्रमुख शरद पवार से हुई थी, हालांकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से उनकी मुलाकात नहीं हो पाई थी, लेकिन उनके बेटे से उनकी मुलाकात हुई थी. ममता बनर्जी बीजेपी के खिलाफ विरोधी पार्टियों को एकजुट करना चाहती थी, लेकिन एक साल के बाद भी वह विरोधी दलों को एकजुट नहीं कर पाईं. इस बीच यूपी सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत ने ममता बनर्जी के हौसले को पस्त कर दिया और पंजाब में जीत के बाद अरविंद केजरीवाल ममता बनर्जी से आगे निकलते नजर आए. वहीं, गोवा में पहली बार चुनाव लड़ी ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को करारी हार मिली.
बम्पर जीत के एक साल के बाद भी राष्ट्रीय राजनीति के हाशिये पर हैं ममता बनर्जी
हालांकि चुनाव के बाद ममता बनर्जी लगातार विरोधी दलों को एकजुट करने में जुटी हुई है, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में ममता बनर्जी ने अन्य राज्यों के बीजेपी विरोधी दल नेता मुलाकात अवश्य ही करते हैं, लेकिन किसी ने किसी रूप से कन्नी काटते नजर आते हैं. ममता बनर्जी ने पहले कांग्रेस को अलग कर विरोधी दलों को एकजुट करने की कोशिश की थी, लेकिन इससे विरोधी दल और भी बिखरता नजर आया और राष्ट्रीय राजनीति में ममता बनर्जी को बीजेपी की विरोधी की तुलना में कांग्रेस की ज्यादा विरोधी के रूप में पेश किया गया, इससे भी ममता बनर्जी की विरोधी छवि को धक्का लगा और विरोधियों को एकजुट करने की उनकी कोशिश को ग्रहण लग गया.