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दिल्ली बनाम केंद्र: राज्य सरकार और उपराज्यपाल के बीच ‘प्रशासनिक सेवा नियंत्रण’ विवाद पर 11 मई को होगी सुनवाई

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दिल्ली सरकार (Delhi Government) और केंद्र सरकार के बीच चल रहा विवाद सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर आ गया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र और दिल्ली के बीच केवल ‘प्रशासनिक सेवा नियंत्रण’ विवाद को निर्णय के लिए पांच न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा है. चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि पांच जजों की पीठ ने ‘सेवाओं’ को छोड़कर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विवाद के सभी मुद्दों पर फैसला किया था. शीर्ष अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों की दलीलों को सुनने के लिए बुधवार 11 मई को पांच जजों की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए मामले को सूचीबद्ध किया है, जोकि ‘सेवाओं’ को किसको नियंत्रित करना चाहिए, उस पर सुनवाई करेगी.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण पर विवाद को संविधान पीठ को भेजा जाए. वहीं, केंद्र सरकार (Central Government) ने मामले को संविधान पीठ को भेजने की मांग की है. जबकि दिल्ली सरकार ने तर्क दिया है कि ऐसा करना अनावश्यक है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि पहले उपराज्यपाल और दिल्ली के मुख्यमंत्री के बीच शक्तियों को लेकर विवाद हो चुका है.

इससे पहले, अप्रैल के आखिर में हुई सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि हम प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण के विवाद के निपटान के लिए पांच न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजने पर विचार करेंगे. हालांकि, दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस याचिका को लेकर अपना कड़ा विरोध व्यक्त किया था. केंद्र सरकार ने 27 अप्रैल को शीर्ष अदालत से कहा था कि इस मामले को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषान मेहता पेश हुए. जबकि दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत में दलीलें पेश कीं.

2018 के फैसले में थी अस्पष्टता

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायाधीश सूर्यकांत और हिमा कोहली की पीठ से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट हर छोटी-छोटी बातों पर ध्यान नहीं दे सकती है. उन्होंने कहा कि अगर यहां पर सिर्फ तीन या पांच जज होते तो ऐसा कैसे किया जाता. वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि संविधान पीठ की ओर से साल 2018 में दिए गए फैसले में कोई अस्पष्टता नहीं थी. लेकिन ऐसा मालूम होता है तो वर्तमान पीठ इस मामले को देख सकती है. दूसरी ओर, मेहता ने अपनी दलील में ये बात कही कि इस मामले को संविधान पीठ को भेजना इसलिए जरूरी है, क्योंकि पहले के फैसलों में ये तय नहीं हो पाया कि क्या केंद्र या दिल्ली सरकार के पास विवादित विषय से निपटने की क्षमता होगी.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, सरकार ने दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (संशोधन) अधिनियम 2021 को लागू किया. इसके प्रभावी होते ही दिल्ली में सरकार का मतलब ‘उपराज्यपाल’ हो गया. इस वजह से अब अगर दिल्ली विधानसभा में कोई भी विधेयक पारित होता है, तो उसे मंजूर करने का अधिकार उपराज्यपाल के पास होगा. इसके अलावा, दूसरे फैसलों में भी उपराज्यपाल की सलाह को जरूरी कर दिया गया है. अब इसी बदलाव को लेकर दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. दिल्ली सरकार की तरफ से पेश हुए वकील का कहना है कि तीन विषयों को छोड़कर दिल्ली पूर्ण राज्य है.

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