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झारखंड में रंग लाई युवा किसान की मेहनत, पथरीली-बंजर जमीन पर लहलहा रहे आम के फल और तरबूज

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“जब दो चट्टानों के बीच बिना मेहनत किए एक बड़ा पेड़ उग सकता है तो मैं पथरीली जमीन पर पेड़ क्यों नहीं उगा सकता, कम से कम यहां थोड़ी मिट्टी तो है”. झारखंड के युवा किसान (Youth Farmers) चैतन्य कुमार गंझू की इन शुरुआती पंक्तियों से उनके हौसले का अंदाजा लगाया जा सकता है. क्योंकि यही वो हौसला था, जिसके बदौलत चैतन्य कूमार ने 36 एकड़ की पहाड़ीनुमा आकार की झाड़ियों से भरी पथरीली जमीन (Barren Land) को पहले साफ किया, फिर उमें प्लानिंग करके उसे खेती योग्य बनाया. आज लगभग पांच सालों की मेहनत के बाद उनके फार्म में आम, बेर, सागवान, महोगुनी, अनार समेत अन्य पेड़ और सब्जियां लहलहा रहे हैं. इस बार आम की कम पैदावार (Mango Cultivation) की खबरों के बीच भी उनके पेड़ आम से लदे हुए हैं.

चैतन्य कुमार ने टीवी 9 को बताया कि उन्होंने 2015 में यहां पर पौधे लगाने शुरू कर दिए थे. लाह की खेती में एक्सपर्ट चैतन्य चाहते थे की वो एक ऐसा फार्म बनाएंगे जिसमें लाह कल्चर और हॉर्टिकल्चर (Horticulture) का समावेश हो. ऐसा बगान बनाना उनका सपना था, पर इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें जमीन नहीं मिल रही थी. पूंजी का भी अभाव था इसलिए अच्छी जमीन लेने की नहीं सोच पा रहे थे, इस बीच उन्हें यह जमीन मिली जो सदियों से बंजर थी. चारागाह के तौर पर इसका इस्तेमाल होता था. खूंटी मे आम्रेश्वर धाम मंदिर के निकट यह जमीन मिलने बाद उन्होंने सबसे पहले यहां पर वाटर हार्वेस्टिंग का काम किया.

वाटर हार्वेस्टिंग से हुआ फायदा

जमीन 70 फीसदी ढालू थी, उपर से पथरीली मिट्टी थी, ऐसे में इस पर सिंचाई कर पाना असंभव सा था. इसके लिए उन्होंने जमीन में ट्रेंच बनवाएं जिसे असमान्य खांचा कहा जाता है. गड्ढे के ढलान की तरफ आम का पौधा लगा दिया. इससे फायदा यह हुआ की पानी सीधा बहकर नीचे नहीं जा रहा था बल्कि गड्ढे में भर रहा था, जिसके कारण जनवरी फरवरी तक पौधों को सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है. साथ ही उपरी मिट्टी का कटाव भी रुकता है. इतना नहीं नहीं उन्होंने अपनी जमीन के चारों तरफ चार फीट गहरा और चार फीट चौड़ा नाला भी बनवाया है. इससे जमीन का पानी बाहर नहीं जाता है.

छह सालों में लगाए हजारों पेड़

चैतन्य बताते हैं कि उन्होंने पिछले छह सालों में अपने बगान में छह हजार से अधिक पेड़ लगाए हैं. इनमें 900 आम, 200 लीची, 300 नींबू, 250 अमरूद, 300 अनार और 500 सरीफा के पौधे हैं जबकि लाह की खेती के लिए उन्होंने बेर के 1200 पेड़ लगाए हैं और कुसुम के 200 पेड़ लगाए साथ ही इमारती लकड़ियों के पौधे भी उन्होंने लगाए हैं जिनमें 2000 सागवान और 500 महोगुनी के पेड़ हैं. फार्म से संचालन के लिए पैसे आते रहे इसके लिए दो तालाब के जरिए मछली पालन करते हैं, साथ ही मुर्गी पालन औऱ बकरी पालन भी कर रहे हैं. पांच एकड़ में ड्रिप इरिगेशन के जरिए सब्जियों की खेती करते हैं.

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