झारखंड में एमएसपी पर धान की खरीद (Paddy Procurement) लगभग पूरी हो गई है. लेकिन तय लक्ष्य को सरकार पूरी नहीं कर पाई है. इस साल आठ लाख मिट्रिक टन की जगह सिर्फ 7.5 लाख मिट्रिक टन की ही खरीद हो सकी है. प्रदेश के 139359 किसानों को धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के रूप में इस साल 1477 करोड़ रुपये मिले हैं. वहीं पर्ष 2020-21 में सिर्फ 1187.5 करोड़ रुपये का धान बिका था. इस साल किसानों को धान बिक्री करने पर पिछली बार से अधिक पैसा मिला है. जो झारखंड में धान खरीद का एक नया रिकॉर्ड है.
राज्य सरकार धान खरीद के मामले में अब भी लक्ष्य से पांच लाख टन पीछे हैं. एक महीने की समय सीमा बढ़ाए जाने के बाद भी निर्धारित धान खरीद के लक्ष्य का 100 फीसदी पूरा हो सका. गौरतलब है कि साल 2021 में दिसंबर के महीने में मौसम खराब होने के कारण धान की खरीद 15 दिनों बाद की देरी से शुरू हुई थी. जिसकी भारपाई करने के लिए एक महीने अधिक का समय दिया गया था, इसके बावजूद धान की खरीदारी अब तक नहीं हो पायी है.
किसानों का टर्नआउट रहा कम
राज्य सरकार द्वारा सरकारी दर पर धान की खरीद के लिए इस साल 274126 किसानों (Farmers) ने निबंधन कराया था. इन किसानों को धान बेचने से संबंधित 520092 एसएमएस भेजे गये थे. जबकि धान खरीद केंद्रों तक 13959 किसान ही धान लेकर पहुंचे थे. पूरे राज्य में धान खरीद के लिए 681 केंद्र बनाए गए थे. इसके बाद भी सरकार धान खरीद के अपने निर्धारित लक्ष्य को अभी तक पूरा नहीं कर पायी है. रांची, हजारीबाग, कोडरमा जैसे जिलों से सबसे अधिक धान की खरीदारी हुई है.
प्रोत्साहन के बावजूद नहीं आए किसान
राज्य सरकार द्वारा किसानों को धान खरीद के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इस बार कई कदम उठाए गए थे, जिसके तहत धान बेचने के तीन दिन के अंदर किसानों को पहली किश्त का भुगतान किया जाना था. इसके बाद भी किसान धान बेचने के लिए अधिक संख्या में नहीं आ रहे थे. अधिक से अधिक किसान धान बेच पाए इसके लिए एक किसान से 200 क्विंटल धान खरीद करने की बात कही गयी थी. पर किसानों की संख्या इस बार भी कम ही रही.
किसानों की समस्या
हालांकि बाद में मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर यह खबरे की आयी की राज्य के लाखों किसान अभी दूसरी और तीसरी किश्त के भुगतान का इंतजार कर रहे हैं. इसके कारण किसानों में नाराजगी है. दरअसल धान खरीद के बाद भुगतान में हर साल देरी होती. नाम नहीं छापने की शर्त पर मांडर के एक किसान बताते हैं कि पैसे के भुगतान में देरी कोई नई बात नहीं है, कई बार तो छह महीने और साल भर तक का इंतजार करना पड़ता है. जबकि किसानों को अगली फसल के लिए तुंरत पैसे की जरूरत होती है. इसलिए कई किसान बिचौलियों को सस्ते दाम में अपने धान बेच देते हैं, ताकि उन्हें नकद पैसे मिल सकें.