मध्यप्रदेश में कांग्रेस (MP Congress) आलाकमान ने अगले विधानसभा चुनाव को देखते हुए गुटिय संतुलन बनाना शुरू कर दिया है. सत्ताधारी दल बीजेपी और कांग्रेस के भीतर बने दबाव के चलते कमलनाथ (Kamal Nath) ने प्रतिपक्ष के नेता का पद छोड़ दिया है. कांग्रेस आलाकमान ने वरिष्ठ विधायक डॉ. गोविंद सिंह को प्रतिपक्ष का नेता बनाया है. वे चंबल इलाके से आते हैं. भिंड जिले के लहार विधानसभा सीट से लगातार सात बार से चुनाव जीत रहे हैं.
उनकी वरिष्ठता के कारण ही दिग्विजय सिंह प्रतिपक्ष के नेता का पद उन्हें देने के लिए पार्टी पर दबाव बनाए हुए थे. डॉ. गोविंद सिंह राज्य की कांग्रेस राजनीति में दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाते हैं. मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के बीजेपी में चले जाने के बाद से दिग्विजय सिंह इस इलाके में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में लगे हुए थे. लेकिन, कमलनाथ प्रतिपक्ष के नेता का पद छोड़ने को तैयार नहीं थे.
गोविंद सिंह के जरिए कमलनाथ के विरोधियों को साधने की कोशिश
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी थे और प्रतिपक्ष के नेता भी. बीजेपी इसे लगातार मुद्दा बनाकर कांग्रेस के असंतोष को हवा दे रही थी. दो पदों पर बने रहना कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में असंतोष को बढ़ा रहा थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद राज्य में कांग्रेस की गुटीय राजनीति में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह आमने-सामने खड़े दिखाई दे रहे थे. कई मौकों पर ये बात सामने भी आई कि इन दोनों बड़े नेताओं के बीच समन्वय की कमी है. इसका असर कांग्रेस के अन्य नेताओं पर दिखाई दिया.
पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह विंध्य में अपने हिसाब से सियासी समीकरण बैठाने में लगे हुए थे. जबकि मालवा-निमाड़ क्षेत्र से आने वाले अरुण यादव भी उपेक्षित महसूस कर रहे थे. पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने किसान और कृषि के उत्थान पर सुझाव देने के लिए भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में एक कमेटी गठित की थी, इसमें अरुण यादव को जगह देकर साधने की कोशिश की गई. यादव चार साल तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं.
मई 2018 में अरुण यादव को हटाकर ही कमलनाथ अध्यक्ष बने थे. राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अध्यक्ष का पद नहीं छोड़. सरकार जाने के बाद भी कमलनाथ ने किसी अन्य नेता को विधायक दल का नेता नहीं बनने दिया. डॉ. गोविंद सिंह नाम प्रतिपक्ष के नेता पद के लिए हमेशा ही सबसे आगे रहा है.
सात बार के विधायक सत्तर पार की उम्र में कितने प्रभावी
डॉ. गोविंद सिंह कांग्रेस के क्लब-70 के सदस्य हैं. उनकी उम्र 71 साल की हो चुकी है. दिग्विजय सिंह और कमलनाथ 74-74 साल के हैं. जबकि भारतीय जनता पार्टी नए चेहरों के साथ चुनाव की नई रणनीति बना रही है. डॉ. गोविंद सिंह विधानसभा का अगला चुनाव लड़ेंगे या नहीं इसको लेकर संशय बना रहता है. जबलपुर के शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय से डॉक्टरी की डिग्री हासिल करने वाले डॉ.गोविंद सिंह कई बार अगला चुनाव न लड़ने के संकेत दे चुके हैं.
शायद इसकी वजह कांग्रेस में वरिष्ठता को सम्मान न मिलना रहा है. प्रतिपक्ष के नेता का पद मिल जाने के बाद शायद उनकी नाराजगी काफी हद तक कम हो गई होगी. मध्यप्रदेश में नेतृत्व को लेकर कांग्रेस का संक्रमण काल चल रहा है. नई पीढ़ी के जिन नेताओं को पार्टी आगे बढ़ाना चाहती है मैदानी स्तर पर वे अपनी छाप नहीं छोड़ पाए हैं. कमलनाथ से भी पटरी न बैठ पाने के कारण युवा नेताओं के लिए राजनीति तनाव का कारण बन गई. पिछले दिनों जब प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की बात चली तब कमलनाथ ने पहली बार पार्टी के सभी बड़े नेताओं से एक साथ बात की थी.
फिर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी कई दौर में राज्य के हालात पर चर्चा की. इसके बाद ही यह संकेत मिलने लगे थे कि कमलनाथ प्रतिपक्ष के नेता का पद छोड़ देंगे. लेकिन, उनकी पहली पसंद डॉ. गोविंद सिंह नहीं थे. कमलनाथ अपने किसी समर्थक को यह पद देना चाहते थे. लेकिन, पार्टी के भीतर और बाहर बन रहे दबाव के कारण यह संभव नहीं हो पाया.
विधानसभा के भीतर आक्रामक नेता की भूमिका में होंगे?
डॉ. गोविंद सिंह के प्रतिपक्ष का नेता बन जाने के बाद ग्वालियर-चंबल की राजनीति भी बदलेगी और सदन के भीतर की भी. कमलनाथ पर यह बड़ा आरोप लगता रहा है कि वे सदन में सरकार को घेर नहीं पाते. सत्र भी समय से पहले खत्म हो जाता है. विपक्ष जनहित का कोई मुद्दा ही नहीं उठा पाता. इस मामले में डॉ. गोविंद सिंह की छवि जुझारू नेता की है. वे मुद्दों के जरिए सरकार के लिए परेशानी जरूर खड़ी कर सकते हैं. राज्य में विधानसभा के चुनाव अगले साल अक्टूबर-नवंबर में होना है. इसके पहले विधानसभा के चार से पांच सत्र संभावित हैं. चुनाव से पहले विपक्ष यदि सदन में सरकार को घेरने में सफल हो जाता है तो चुनाव की मैदानी लड़ाई पर भी इकस असर पडेगा.
कांग्रेस की कोशिश होगी कि वह ग्वालियर-चंबल संभाग में अपनी पुरानी स्थिति को बहाल करे. यद्यपि सिंधिया के मुकाबले में डॉ. गोविंद सिंह का चेहरा ज्यादा असरकार दिखाई नहीं देता. लेकिन,हताश कार्यकर्ताओं में उत्साह जरूर वे भर सकते हैं. कांग्रेस राजा दिग्विजय सिंह ने प्यादे के जरिए महाराजा को मात देने की रणनीति बनाई है. अंचल के राजनीतिक समीकरण में गोविंद सिंह की नियुक्ति गुटीय राजनीति पर लगाम भी लगा सकती है. मुरैना से लेकर गुना तक दिग्विजय सिंह समर्थक डॉ.गोविंद सिंह के साथ खड़े दिखाई दे सकते हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)