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खुलासा: घरेलू हिंसा के मामले में टॉप पर है उत्तर प्रदेश, दिल्ली समेत अन्य राज्यों का जानिए हाल

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घरेलू हिंसा एक्ट (Domestic Violence Act) में बदलाव की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बुधवार को सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार की ओर से बताया गया है कि भारत में घरेलू हिंसा (Domestic Violence) के कुल 2,95,601 केस दर्ज हैं. सरकार के आंकड़ों के अनुसार घरेलू हिंसा के मामले में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) पहले पायदान पर है. यूपी में घरेलू हिंसा की अब तक 65,481 शिकायतें दर्ज हैं. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से सभी प्रमुख राज्यों के आंकड़े पेश किए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 28 अप्रैल को होगी.

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जानकारी दी है कि घरेलू हिंसा के मामले में उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर राजस्थान है. वहीं तीसरे स्थान पर आंध्र प्रदेश है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि राजस्थान में घरेलू हिंसा के कुल 38,381 केस दर्ज हैं. तो वहीं आंध्र प्रदेश में घरेलू हिंसा के 37,876 केस दर्ज हैं. इस मामले में दिल्ली की हालत ठीक है. दिल्ली में घरेलू हिंसा के करीब 3,564 केस दर्ज हैं.

महाराष्ट्र में 16,168 केस हैं दर्ज

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार केरल में घरेलू हिंसा के 20,826 केस दर्ज हैं. वहीं मध्य प्रदेश में 16,384 मामले, महाराष्ट्र में 16,168 मामले, असम में 12,739 केस, कर्नाटक में 11,407 मामले और पश्चिम बंगाल में 9,858 घरेलू हिंसा के केस दर्ज हैं. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नालसा देश भर में जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के माध्यम से प्रत्येक जिले में एक संरक्षण सहायक प्रदान करने के लिए केंद्रीय कानून मंत्रालय के साथ चर्चा कर रहा है.

केवल पीओ को नियुक्त करना पर्याप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट

नालसा ने मंत्रालय को सुझाव दिया है कि न्याय बंधु के बजाए न्याय भाग्यनि होना चाहिए क्योंकि संकट में महिलाएं अन्य महिलाओं की सहायता करने में सक्षम हो सकती हैं. नालसा के चेयरमैन जस्टिस यूयू ललित ने सुझाव दिया है कि गांवों में आंगनवाड़ी और आशा वर्कर्स, इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं. वहीं घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005 के तहत संरक्षण अफसरों की नियुक्ति के संबंध में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल पीओ को नियुक्त करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन्हें मदद भी उपलब्ध करानी है.

तीन सदस्यीय पीठ ने दिया सुझाव

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने मामले में सुझाव दिया है कि आंगनवाड़ी और आशा वर्कर्स को संरक्षण सहायक के रूप में शामिल किया जा सकता है. कोर्ट का कहना है कि ऐसा इसलिए किया जा सकता है क्योंकि वे पीडि़त महिलाओं के लिए आसानी से उपलब्ध हैं. ऐसा ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलता है.

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