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क्या चुनावी गाने “जय भवानी” का इस्तेमाल उद्धव को सियासी धार में ला सकता है? क्या यह पुरानी पिच पर नए खेल का माध्यम बन सकता है?

by Nikhil

महाराष्ट्र की राजनीति में एक उत्तेजना की लहर उठी जब शिवसेना ने लोकसभा चुनावों में अपने पार्टी के लिए एक चुनावी गीत का आयोजन किया। चुनाव आयोग ने इस पर ध्यान दिया, जिसने एक नई वार्ता का आरंभ किया। उद्धव ठाकरे ने इस घटना को महाराष्ट्र की गरिमा और अपने पार्टी की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के साथ जोड़ने का प्रयास किया।

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना द्वारा चुनावी गीत का प्रसार करने के बाद, सियासत में अचानक एक गरमाहट महसूस हो रही है। इस सीमा तक जो गरमाहट होने की वजह है, वह है ‘जय भवानी’ और ‘हिंदू’ शब्दों के उपयोग का इस गीत में। चुनाव आयोग ने इन शब्दों के इस्तेमाल के बाद उद्धव ठाकरे की पार्टी को नोटिस दिया था, लेकिन उद्धव ने इन शब्दों को हटाने के बजाय, उन्हें और ज्यादा महत्व देने का फैसला किया। इससे उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति में नए रंग भर दिए हैं, और इन शब्दों को अपना सियासी हथियार बनाया है। सियासी विश्लेषकों के अनुसार, उद्धव की शिवसेना अब इन शब्दों के साथ अधिक कठोर और स्थिर रहने के लिए प्रयासरत है, और अपनी हिंदुत्ववादी छवि को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। इस संबंध में, उम्मीदवारों के नेताओं की एक बैठक भी हुई, जिसमें समूचे महाराष्ट्र में एक संदेश के साथ उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने यह दिशा निर्देश बढ़ाने का निर्णय लिया है।

दरअसल, महाराष्ट्र की सियासत तब गर्म होने लगी, जब उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने लोकसभा के चुनाव में अपनी पार्टी में चुनावी गीत लॉन्च किया। जब चुनाव आयोग ने इस पर नोटिस दिया, तो उद्धव ठाकरे ने इसको महाराष्ट्र की अस्मिता और अपनी पार्टी की पुरानी हिंदुत्ववादी छवि से जोड़ना शुरू कर दिया। शिवसेना सेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने इस नोटिस को मिलने के बाद कहा कि वह अपनी पार्टी के गीत से न तो ‘जय भवानी’ हटाने जा रहे हैं और न ही उसके किसी शब्द को कम करने वाले हैं। ठाकरे ने कहा कि शिवसेना की जो परंपराएं चलती चली आ रही है, उसे किसी कीमत पर ना तो कमजोर होने दिया जाएगा और ना ही किसी तंत्र के सामने झुकने दिया जाएगा। इन्हीं परंपराओं में ‘जय भवानी-जय शिवाजी’ का उदघोष भी शामिल है। इस मामले में पार्टी के बड़े नेताओं ने मंगलवार को बैठक कर उद्घोष को हमेशा की तरह आगे बढ़ाने के लिए निर्देश भी दिए गए।

महाराष्ट्र के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना को नोटिस तो दे दिया, लेकिन पार्टी ने इससे कमजोर पड़ रही अपनी हिंदुत्ववादी छवि को चमकाने की व्यवस्था कर ली। सियासी जानकार और वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु शितोले कहते हैं कि दरअसल शिवसेना जब से इंडिया गठबंधन के साथ आई है, तब से उसके हिंदुत्व की छवि को कमजोर कहा जाने लगा है। अब जब चुनाव आयोग ने उनके एक चुनावी गीत के जय भवानी और हिंदू जैसे शब्दों पर आपत्ति की, तो उद्धव ठाकरे ने इसको बड़ा मौका समझ कर लपक लिया। वह कहते हैं कि उद्धव ठाकरे ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके चुनाव आयोग की ओर से भेजे गए नोटिस को जवाब देने की बजाय, यह संदेश दिया कि जय भवानी और हिंदू जैसे शब्द बिल्कुल नहीं हटने वाले।

सियासी जानकारों का मानना है कि महाराष्ट्र में शिवसेना शुरुआत से ही हिंदुत्ववादी विचारधारा की पार्टी के तौर पर पहचानी जाती है। लेकिन हाल के दिनों में हुई सियासी उथल-पुथल के बीच जब कांग्रेस और अन्य दलों के साथ गठबंधन हुआ, तो उसकी इस विचारधारा को लेकर तमाम तरह के सवालिया निशान उठने लगे। राजनीतिक विश्लेषक हेमंत लीलाधर साठे कहते हैं कि इस विवाद के शुरू होने के साथ ही जिस तरह उद्धव ठाकरे ने छत्रपति शिवाजी महाराज, देवी तुलजा भवानी और हिंदवी स्वराज की बात कही है। उससे इस बात का अंदाजा लगाना आसान हो जाता है कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना किस तरह इस मामले को अपनी हिंदुत्ववादी छवि के साथ आगे लेकर जा रही है। वह कहते हैं कि दरअसल इस पूरे मामले को उद्धव ठाकरे की शिवसेना एक तरह से सियासी ऑक्सीजन के तौर पर देख रही है। महाराष्ट्र में गठबंधन के साथ आने पर यह पहला मौका है, जब जय भवानी और हिंदू शब्द के साथ खुलकर उद्धव ठाकरे की सेना ने मोर्चा संभाला है।

चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना को नोटिस भेजा है, जिससे उनकी पार्टी अपने पुराने मामलों को लेकर सामने आ रही है, जिसमें उसकी हिंदुत्ववादी छवि चमक रही थी। नोटिस प्राप्त करने के बाद, उद्धव ने याद दिलाया कि उनके पिता बाला साहब ठाकरे को छह साल के लिए चुनाव लड़ने से रोका गया था, क्योंकि उन्होंने हिंदुत्व के लिए महत्वपूर्ण अभियान चलाया था। उन्होंने चुनाव आयोग पर भी आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि अगर हमारे गीत में ‘जय भवानी’ और ‘हिंदू’ शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, तो चुनाव आयोग क्यों नोटिस नहीं देता है, जैसा कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की रैलियों में होता है।

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