किसानों की आजीविका का मुख्य स्त्रोत खेती ही होती है, लेकिन खेती से होने वाली आय पर किसान और उनके परिवार सालभर निर्भर नहीं रह सकते हैं. ऐसे में सरकार किसानों की आय (Farmer’s Income) बढ़ाने के लिए प्रयासरत है. जिसके तहत सरकार की तरफ से गठित समितियां किसानों को खेती के साथ दूसरे काम करने की भी सलाह देती हैं. ऐसे में किसानों के लिए बकरी पालन (Goat Farming) फायदे का सौदा हो सकता है. किसान अगर बकरी पालन को व्यवसायिक तरीके से करते हैं तो यह उनके लिए कमाई का दूसरा स्त्रोत विकसित हो सकता है. वहीं अगर किसान बकरी पालन के व्यवसाय को वैज्ञानिक तरीके से करते हैं तो वह इससे बेहतर कमाई कर सकते हैं. ऐसे में किसानों के लिए बकरी पालन का वैज्ञानिक तरीका जानना जरूरी है. आईए जानते हैं कि बकरी पालन का वैज्ञानिक प्रशिक्षण किसान कहां से ले सकते हैं और इसका वैज्ञानिक तरीका क्या है.
यह संस्थान बकरी पालन के लिए देता है प्रशिक्षण
बकरी पालन को किसानों की आजीविका का स्त्रोत के तौर पर विकसित करने के लिए सरकार ने आईसीएआर केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मखदूम फरह मथुरा को 1979 में विकसित किया था. यह संस्थान तब से लगातार बकरियों पर काम कर रहा है. साथ ही संस्थान किसानों को बकरी पालन से जुड़ी वैज्ञानिक जानकारी भी उपलब्ध करा रहा है. इसके साथ ही संस्थान समय-समय पर किसानों को बकरी पालन का वैज्ञानिक प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराता है. इसके लिए संस्थान की तरफ से प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
वैज्ञानिक तरीके से पालन के लिए पहले करें नस्ल का चयन
बकरी पालन के वैज्ञानिक तरीकों की बात करें तो उसके लिए किसानों को सिर्फ कुछ विशेष बातों को ध्यान रखना होता है. आईसीएआर केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मखदूम फरह मथुरा के विशेषज्ञों के मुताबिक किसी भी किसान को बकरी पालन शुरू करने से पहले बकरी की नस्ल का चयन करना होता है. किसानों को अपने क्षेत्र के अनुसार बकरी की नस्ल का चयन करना होता है. उदाहरण के लिए मथुरा क्षेत्र बरबरी, जमुनापारी, सिरोही, जखराना नस्ल की बकरियों के लिए उपयुक्त है. अगर किसान क्षेत्र के अनुसार बकरियों की नस्ल का चयन करते हैं तो इससे बकरियां स्वस्थ्य रहेंगी.
बकरियों का प्रबंधन है जरूरी
बकरी पालन के लिए बाड़े में बकरियों को प्रबंधन बेहद जरूरी होता है. प्रबंधन में एक मामूली सी चूक भी बड़ा नुकसान करती है. ऐसे में बकरियों का प्रबंधन वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन जरूरी होता है. आईसीएआर केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मखदूम फरह मथुरा विशेषज्ञों के मुताबिक बकरी बाड़े की नियमित सफाई जरूरी है, बाड़े की गंदगी को दूर गड्डे में दबाना चाहिए और नियमित तौर सप्ताह में दो दिन बूझे हुए चूने का छिड़काव करना चाहिए. बाड़े के फर्श पर सूखा घास जलाने से बाड़े को संक्रमणमुक्त किया जा सकता है. वहीं प्रत्येक 4 महीने में बाड़े के अंदर की मिट्टी को 6 इंज तक खोद कर निकालना आवश्यक है, इसकी जगह नई मिट्टी की भराव करना चाहिए. इससे संक्रमण की संभावना कम हो जाती है. जबकि बीमार बकरी को अन्य से दूर रखके और नई बकरियों को पुरानी बकरियों से 20 दिन तक दूर रखकर भी संक्रमण को बकरी बाड़े से दूर रखा जा सकता है.
बेहतर मुनाफे के लिए यह है बकरियों को बेचने का समय और तरीका
बकरियों को सही समय पर बेच कर ही किसान बेहतर कमाई कर सकते हैं. आईसीएआर केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मखदूम फरह मथुरा के विशेषज्ञों के मुताबिक किसानों को बकरियों के मूल्य का निर्धारण उम्र की बजाय वजन के हिसाब से करना चाहिए. वहीं विशेषज्ञों ने बकरियों के बेचने की जानकारी भी दी है. जिसके तहत छोटे और मध्यम नस्ल की बकरियों को 6 से 9 महीने में और बड़ी नस्ल की बकरियों को 7 से 12 महीने में बेच कर बेहतर फायदा प्राप्त कर सकते हैं.
नोट : लेख सामान्य जानकारियों पर आधारित है. इस संबंध में अधिक जानकारियां आईसीएआर केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मखदूम फरह मथुरा से प्राप्त की जा सकती हैं.