डा राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के 12वी अनुसंधान परिषद की बैठक के तीसरे दिन की बैठक को संबोधित करते हुये कुलपति डा रमेश चन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि देश के विकास में किसानों (Farmers) का और कृषि वैज्ञानिकों (Agriculture Scientist) का अहम योगदान है. उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी कृषि के क्षेत्र (Agriculture Sector) में महत्वपूर्ण प्रगति हो रही है, जिससे देश के विकास को बल मिला है. उन्होंने कहा कि कृषि एवं इससे संबद्ध क्षेत्रों में लाखों रोजगार की संभावनाएं हैं. उन्होंने कहा कि सुखेत माडल,केले के रेशे से उपयोगी सामान, अरहर के डंठल से फर्नीचर, हल्दी के पत्तों से तेल तथा अन्य विश्वविद्यालय की विकसित तकनीकों से राज्य के हजारों युवा जुड़ रहे हैं और स्वरोजगार से आय अर्जित कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय किसानों की आय बढाने को लेकर प्रतिबद्ध है और लगातार ऐसी तकनीकें विकसित कर रहा है जिससे युवाओं को सुयोग्य रोजगार मिल सके. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी (PM Modi) की विश्वविद्यालय की सराहना से सभी वैज्ञानिकों का उत्साह बढ़ा है और वे दोगुनी गति से कार्य कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है कि वे एक सुयोग्य टीम का नेतृत्व कर रहे हैं. अनुसंधान परिषद की बैठक में हल्दी की प्रजाति राजेंद्र सोनिया , स्थानीय मछली प्रजाति गैंची में ब्रीडिंग की तकनीक तथा तालाब में पाली हाउस बनाकर झींगा पालन की तकनीक को भी जारी करने के लिये बिहार सरकार से संस्तुति करने का निर्णय लिया गया.
पॉली हाउस में हो रहा झींगा का उत्पादन
आपको बता दें कि हल्दी का राजेंद्र सोनिया प्रभेद, खरीफ मौसम में उगाया जाने वाला उन्नत प्रभेद है जो 135 से 145 दिन में तैयार हो जाता है. इसकी उपज 55 से 64 टन प्रति हेक्टेयर होती है. हल्दी के इस प्रभेद पर टैफरिना तथा अन्य रोगों का प्रभाव न के बराबर होता है. इसी तरह झींगा का उत्पादन ठंड के समय नहीं हो पाता था क्योंकि झींगा मछली कम तापमान में मर जाती है. इससे निपटने के लिये तालाब में पाली हाउस का निर्माण कर झींगा पालन की तकनीक से ठंड के मौसम में भी झींगा का उत्पादन हो सकता है. स्थानीय मछली गैंची का बीज (जीरा) नहीं मिलता जिसके कारण गैंची के पालन में समस्या होती है. विश्वविद्यालय में पहली बार गैंची के प्रजाति के जीरा ( बीज) उत्पादन में सफलता मिली है. इससे तालाब में गैंची मछली का पालन हो सकता है.
भारत में पहली बार गैंची मछली का हुआ उत्पादन
कुलपति डा श्रीवास्तव ने कहा कि बाजार में स्थानीय मछलियों की काफी मांग रहती है लेकिन इनके बीज की अनुपलब्धता के कारण इसका पालन नही हो पाता है. विश्वविद्यालय इस ओर कार्य कर रहा है और भारत में पहली बार गैंची मछली के बीज उत्पादन में सफलता मिली है. अनुसंधान परिषद की बैठक में एक सौ चौदह अनुसंधान परियोजनाओं की समीक्षा की गयी. इसमें भारत सरकार से वित्त पोषित सोलह,बिहार सरकार से वित्त पोषित छह, अंतर्राष्ट्रीय वित्त पोषित चार तथा अन्य परियोजनाएं शामिल हैं.
सभी परियोजनाओं की हुई समीक्षा
अनुसंधान परिषद की बैठक में बाह्य विशेषज्ञ के रूप में शामिल वरिष्ठ वैज्ञानिक डा ए के शर्मा तथा डा के के सतपथी ने कुलपति डा श्रीवास्तव के साथ सभी परियोजनाओं की समीक्षा के दौरान उचित दिशानिर्देश दिये. कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा पी एस ब्रह्मानंद, सह निदेशक डा एन के सिंह एवं सह निदेशक डा संजय कुमार सिंह ने सम्मिलित रूप से किया. अनुसंधान परिषद की बैठक में कुलसचिव डा पी पी श्रीवास्तव, निदेशक शिक्षा डा एम एन झा, निदेशक प्रसार शिक्षा डा एम एस कुंडू, अधिष्ठाता डा अम्बरीष कुमार , डा रत्नेश कुमार झा, डा सतीश कुमार सिंह, डा शिवेंद्र कुमार, डा कुमार राज्यवर्धन , डा पीके झा , डा दयाराम समेत विभिन्न वैज्ञानिक एवं पदाधिकारी भी सम्मिलित हुये.