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एक्वा टूरिज्म को प्रमोट कर रहे रांची के युवा मछली पालक

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झारखंड मछली पालन के क्षेत्र में झारखंड काफी तरक्की कर रहा है. मत्स्य पालकों को प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) का लाभ मिल रहा है. इन योजनाओं का लाभ लेकर काफी संख्या में युवा आगे बढ़ रहे हैं. रांची जिले के रातू में स्थित किंग फिशरीज (King Fishries) भी मत्स्य पालन के क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रहा है. यहां पर मछली पालन (Fish Farming) के अत्याधनिक तरीकों को अपनाया जा रहा है. फार्म के संचालक निशांत कुमार का दावा है कि किंग फिशरीज भारत का पहला ऐसा फार्म है जहां पर पांच तरीकों से मछली पालन किया जा रहा है. इतना ही नहीं यहां पर एक्वा टूरिज्म (Aqua Tourism) को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है.

निशांत बताते हैं कि किंग फिशरीज एक्वा टूरिज्म के लिए सबसे बेहतर जगह इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि यह रातू स्थित फन कैसल पार्क परिसर के अंदर है. पार्क में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के लिए इंटरटेमनेंट का इंतजाम है. इसलिए यहां पर काफी संख्या में हर रोज लोग आते हैं. एक्वा टूरिज्म में भी वहीं लोग देखने के लिए आएंगे. यहां पर वो आधुनिक तरीके से मछली पालन देख पाएंगे. जिसमें केज कल्चर से लेकर पॉन्ड कल्चर, बॉयोफ्लॉक, ओपेन फिश फार्मिंग और आरएएस तकनीक से मछली पालन देख पाएंगे. इसके अलावा यहां पर ओर्नामेंटल फिश भी दर्शकों के लिए रखा जाएगा.

एक टैंक से हुई थी शुरुआत

यहां पर मछली पालन की शुरुआत एक छोटे से टैंक से हुई थी, इसके साथ ही केज कल्चर और ओपेन तालाब में मछली की स्टॉकिंग की गयी थी. यहां पर करीब 100 एक क्षेत्र में तालाब है. शुरुआती दौर में तकनीकी जानकारी के अभाव में काफी संख्या में मछलियां मर गयी थी. निशांत बताते हैं कि उसके बाद उनकी मुलाकात सिफ्री के वैज्ञानिक डॉ मोहम्मद अकलाकुर से हुई. उन्होंने किंग फिशरीज को को तकनीकी सहयोग किया. उसके बाद उन्होंने फिर से नया तालाब बनवाकर वैज्ञानिक तरीके से मछली पालन किया औऱ बंपर उत्पादन हासिल किया. उसके बाद से किंगफिशरीज ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

सरकारी योजनाओं का मिला

तालाब में सफलतापूर्वक मछली पालन करने के बाद यहां पर बॉयोफ्लॉक के जरिए मछली पालन की शुरुआत हुई. शुरुआत में 24 टैंक लगाए गए. आज प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के जरिए उनके पास 50 और बॉयोफ्लॉक टैंक लगाए गये हैं. इसके साथ ही यहां पर अब टैंको की कुल संख्या 74 हो गयी है. तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए यहां पर आरएएस तकनीक के जरिए भी मछली पालन की तैयारी की गयी है, टैंक बन कर तैयार है. यह पूरी तरह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित होगा. आरएएस के बेहतर संचालन के लिए अत्याधुनिक अलार्म उपकरण व अन्य मशीन लगाए गए हैं. निशांत बताते हैं कि अब उत्पादन का लक्ष्य बड़ा हो गया है. उन्होंने बताया कि इस साल 150-300 टन तक मछली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है.

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