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अब तक, दो करोड़ लोग ने यात्रा का आनंद उठाया है, जबकि 2023-24 में रेलगाड़ी की यात्रा पृथ्वी के 310 चक्करों के समान हो गई है।

by Nikhil

वंदे भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को गौरव से याद करते हुए, अधिकारी बताते हैं कि इसने आधुनिकीकरण के क्षेत्र में एक नई मिलीभगत दर्शाई है। रेलवे की जानकारी के अनुसार, पांच साल पहले, 15 फरवरी 2019 को, दिल्ली से वाराणसी तक दो ट्रेनों की शुरुआत हुई थी। और आज, देश में 102 वंदे भारत ट्रेनें सफर कर रही हैं।

भारतीय रेलवे ने सोमवार को अपने 171 वर्ष के सफल संचालन का जश्न मनाया। सन् 1853 में, आज के दिन मुंबई से ठाणे तक पहली ट्रेन चली थी, जिसने रेलवे के इतिहास को नई दिशा दी। इस अवसर पर रेलवे अधिकारी ने साफ किया कि पिछले कुछ वर्षों में यात्रा के क्षेत्र में बड़ी प्रगति हुई है और रेलवे ने अपने नेटवर्क को विस्तारित करके देश के हर कोने में पहुंच प्रदान की है।

वंदे भारत की सफलता का समर्थन करते हुए, अधिकारी ने बताया कि यह आधुनिकीकरण का एक उदाहरण है। उन्होंने उत्साह से साझा किया कि पांच साल पहले दिल्ली से वाराणसी के बीच दो ट्रेनों की शुरुआत हुई थी, और आज देश में 102 वंदे भारत ट्रेनें सफर कर रही हैं। ये ट्रेनें आज 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 284 जिलों को संबोधित कर रही हैं।

वित्तीय वर्ष 2023-24 में, वंदे भारत ट्रेनों ने पृथ्वी के 310 चक्करों के समान की दूरी का सफर किया है। इसके बाद से लॉन्च होने के बाद, अब तक दो करोड़ लोगों ने वंदे भारत में यात्रा की है, जो हवाई जहाज के सुविधाओं को भी प्रदान करती है।

वंदे भारत एक्सप्रेस के स्लीपर वर्जन को 220 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलने के लिए तैयार किया जा रहा है। रेलवे अधिकारियों ने बताया कि रेलवे ने 400 वंदे भारत ट्रेनों के लिए टेंडर जारी किए हैं। इनमें से कुछ शुरुआती ट्रेनें स्वदेश निर्मित ट्रेनों के स्लीपर वर्जन भी हो सकती हैं। योजना के अनुसार, पहले 200 वंदे भारत ट्रेनों में शताब्दी एक्सप्रेस की तर्ज पर स्थापित किए जाएंगे। दूसरे चरण में, 200 वंदे भारत ट्रेनें स्लीपर होंगी और इन्हें एल्युमीनियम से बनाया जाएगा। इन ट्रेनों का दूसरा वर्जन 200 किमी प्रति घंटे की अधिकतम गति से चलेगा। इसके लिए, दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-कोलकाता रेलवे की पटरियों की मरम्मत की जा रही है, सिग्नल सिस्टम, पुलों को ठीक किया जा रहा है और बाड़ लगाई जा रही है। इसके अलावा, दोनों रेल मार्गों पर 1,800 करोड़ रुपये की लागत से टक्कर रोधी तकनीकी कवच लगाए जा रहे हैं।

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