क्या अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार मांग रही दिल्ली सरकार (Delhi Government) की अर्जी को आगे सुनवाई के लिए संविधान पीठ को भेजा जाए, इस पर मुख्य न्यायधीश (CJI) की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने गुरुवार को आदेश सुरक्षित रख लिया है. केंद्र सरकार का ये कहना है कि ये मसला 2021 में GNCTD एक्ट में हुए संशोधन से भी जुड़ा है. लिहाजा इसे सुनवाई के लिए ये मामला संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि अगर मामला संविधान पीठ को सौपा जाता है तो हम कोशिश करेंगे कि 15 मई तक जिरह पूरी हो जाए.
केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसे दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण करने की जरूरत इसलिए है क्योंकि वह राष्ट्रीय राजधानी और देश का चेहरा है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा था कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की शासन प्रणाली में विधानसभा और मंत्रिपरिषद होने के बावजूद, आवश्यक रूप से केंद्र सरकार की केंद्रीय भूमिका होनी चाहिए. यह किसी विशेष राजनीतिक दल के बारे में नहीं है.
उन्होंने कहा था, ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है इसलिए यह आवश्यक है कि लोक सेवकों की नियुक्ति और स्थानांतरण की शक्ति केंद्र के पास हो. दिल्ली देश का चेहरा है. दुनिया भारत को दिल्ली के जरिए देखती है. चूंकि यह राष्ट्रीय राजधानी है इसलिए यह आवश्यक है कि केंद्र का इसके प्रशासन पर विशेष अधिकार हो तथा महत्वपूर्ण मुद्दों पर नियंत्रण हो.’ सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया था कि दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर किसका नियंत्रण होना चाहिए इस मुद्दे की व्यापक व्याख्या के लिए इसे संवैधानिक पीठ को सौंपा जाना चाहिए.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दी थी ये दलील
पीठ में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं. मेहता ने पीठ से कहा था, इस वजह से अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के लिए प्रदत्त शासन के मॉडल को दिल्ली एनसीटी के लिए उचित नहीं समझा जाता है और एक उचित शासन मॉडल सुझाने के लिए बालकृष्णन समिति का गठन किया गया था जो केंद्र की भूमिका की जरूरत को संतुलित कर सकती है और उसी समय जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को मंच प्रदान कर सकती है.’ सॉलिसीटर जनरल ने दलील दी कि दिल्ली एनसीटी की विधानसभा के विधायी अधिकारों के संबंधों में सूची 2 की प्रविष्टि 41 को लेकर विवादों पर फैसले को रोकने वाले विषय पर जब तक इतने या अधिक न्यायाधीशों की पीठ फैसला नहीं करती, विवाद पर प्रभावी तरीके से निर्णय नहीं लिया जा सकता.
(भाषा इनपुट के साथ)